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During treatment |
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During dischage |
20वर्शीय प्रियंका आदिवासी, ग़न्ने गाव निवासी कल्लू कोल की पह्ली संतान है. गरीबी और अभाओ से जूझता कल्लू के परिवार का जीविका का साधन मजदूरी पर निर्भर है. ग़रीबी मे पली-बढी प्रियंका की शादी उसके मा-बाप ने महज़ 17 साल मे कर दी. शारीरिक रूप से कमजोर प्रियंका साल भर पह्ले जब गर्भवती हुई तो 4 माह का गर्भपात हो गया. प्रियंका धीरे-2 बीमार रह्ने लगी और उसे टी0बी जैसी घातक बीमारी ने अपने आगोश मे ले लिया. प्रियंका के ससुराली जन 2-4 महीने इलाज कराये परंतु कुछ दिन मे ऊब कर उसके मायके गन्ने गाव छोड दिये. अब तक प्रियंका सूख कर कांटा हो चुकी थी, जिस्म पर सिर्फ इंसानी सांचा और सांस बची थी. उसके मा-बाप उसकी उम्मीद छोड चुके थे. तभी संस्था के कार्यकर्ता की नजर प्रियंका पर पडी, आनन-फ़ानन मे उसे राजकीय टी.बी. रोग निवारॅण अस्प्ताल इलाहाबाद मे भर्ती कराया गया. जहा उसकी तबियत और बिगड्ने मेडिकल कालेज रेफर कर दिया गया. मेडिकल कालेज मे लम्बी कार्यवाही के चलते संस्था कार्यकर्ताओ व मेडिकल स्टाफ के बीच खासी झडप हुई तब जाकर प्रियंका का इलाज शुरू हुआ. संस्था की विभागीय पैरोकारी के कारण उसका निह्शुल्क दवाये दिलायी गयी और बाद मे डाट्स से जोड दिया गय. फ़िलहाल प्रियंका स्व्स्थ्य है और नियमित दवाये ले रही है.