दूषित
पानी मे फ्लोराइड
एक
केस स्टडी
फ्लोरोसिस आधुनिक समाज का वह अभिशाप है
जिससे असर बच्चो मे बहुत अधिक पडता है. हजारों बच्चे प्रतिवर्ष इसकी चपेट में आते है. फ्लोरोसिस
मनुष्य को तब होता है जब वह मानक सीमा से अधिक घुलनशील फ्लोराइड-युक्त
पेयजल को लगातार पीने के लिये व्यवहार में लाता रहता है। फ्लोरोसिस होने पर दाँतों की प्राकृतिक
चमक तथा सुन्दरता नष्ट हो जाती है। प्रारम्भिक
अवस्था में दाँत चाक के समान खुरदरा सफेद हो जाता है जो बाद
में धीरे-धीरे पीला,
कत्थई तथा काले रंग का हो जाता है। यह मसूड़ों
से थोड़ी दूर दाँतों की सतह पर मोटी लकीर
के रूप में दिखता है। रोग पुराना होने पर दाँतों की
सतह पर छोटे-छोटे छिद्र बन जाते हैं जिनकी भराई नहीं हो पाती
है।
दन्त
फ्लोरोसिस दाँतों की अन्दरूनी तथा बाहरी दोनों सतहों पर होता है तथा एक बार इसकी गिरफ़्त में आने पर यह लाइलाज हो जाता है। दन्त
फ्लोरोसिस केवल शारीरिक सुन्दरता को ही नहीं
प्रभावित करता है बल्कि यह एक सामाजिक समस्या भी है पेयजल
में फ्लोराइड की मात्रा अधिक होने पर मानव शरीर में फ्लोराइड
अस्थियों से हाइड्रॉक्साइड को हटाकर खुद जमा हो जाता है और अस्थि
फ्लोरोसिस को जन्म देता है।
सामाजिक संस्था एजुकेशन रिसोर्स
सोसाइटी इलाहाबाद ने पिछ्ले वर्षो मे जब स्वास्थ्य के मुद्दो पर विकास शंकरग़ढ कार्य
की शुरुवात किया तो लोगो के खराब स्वास्थ्य के पीछे दूषित पेयजल को एक ग़म्भीर समस्या
के रूप मे पह्चान किया. वैसे भी यह इलाका बुंदेलखंड से सटा होने के साथ सूखा
ग्रस्त माना जाता है और भौगोलिक रूप से पत्थर खदानो की अधिकता होने के कारण जगह-जगह
पानी जमा होता है संस्था के कार्यक्षेत्र के ओसा गाव मे फ्लोराइड प्रभावित दंत रोगी तथा घुटने से
प्रभावित दोनो तरह के केस देखने को मिले. इस गाव मे इंडिया मार्का के कुल 6
हैंड्पम्प लगाये गये है. जिसमे से लोगो के अनुसार तथा-कथित रूप से सिर्फ़ 1
हैंड्पम्प शुद्ध पेयजल देता है शेष ठीक नही हई है. ग़र्मी के आते जब जल स्तर नीचे
चला जाता है तब कुओ के पानी प्रयोग मे लाया जाता है. उपरोक्त तश्वीरे राम एवम लक्ष्मण पुत्र
संदीप कोल,
आयु 5 वर्ष जुड्वा बच्चे है. जिन्हे देखने से साफ़ पता चलता पता चलता है कि ये
बच्चे फ्लोराइड के शिकार है. ये बच्चे भी यही पानी इस्तेमाल करते है. बच्चो के
पिता संदीप को भी संदेह है कि बच्चो के दांत शायद खराब पानी पीने की वजह से बच्चो
के दात खराब हुये है. इसके अलावा इसी गाव का बच्चा कृष्ण कुमार पुत्र स्व0
त्रिलोकी कोल जिसकी उम्र लगभग 10 वर्ष है और 5 जमात मे सरकारी स्कूल मे पढ्ता है.
वह अपने दादा-दादी साथ रहता है. उसके दादा भाईलाल बताते है कि बच्चा शुरू मे ठीक
था ऐसा कुछ पता नही चल. पैरो मे टेंढापन बाद मे दिखाई दिय. बातचीत से पता चला कि
यह खराब पानी पीने से हुआ है. इसके बाद संस्था ने जलनिगम के साथ समन्वयय किया और कार्यक्षेत्र के
सभी गावो के चापाकलो के पानी की जाच कराया जिसमे ADCC Infocad, Maharashtra की सरकार द्वारा प्राधिक्रित संस्था ने सह्योग किया और डाटाबेस
रिपोर्ट WATER AND
SANITATION SUPPORT ORGANIZATION , Lucknow को सौपा तथा एक प्रति जिला विकास अधिकारी द्वारा हमारी संस्था
को उपलब्ध कराई गयी. इस रिपोर्ट के आधार पर पानी मे फ्लोराइड की मात्रा देखा तो
पाया कि न्युंतम () से अधिक 1 मिली0 या इससे ऊपर है. जिससे यह प्रतीत होता है
बच्चो के दांत एवम हड्डिया टेढे व कमजोर होने के पीछे पानी मे छुपे फ्लोराइड का
असर कहा जा सकता है.
अब
तक यह माना जाता रहा था कि फ्लोरोसिस शारीरिक रूप से विकसित युवाओं तथा प्रौढ़ों में ही अधिक होता है। लेकिन यह
देखा गया है कि 12 वर्ष तक की आयु के
बच्चों में यह अधिक घातक है क्योंकि इस आयु वर्ग के बच्चों का शरीर बढ़ रहा होता है और इस उम्र में उनके शरीर के ऊतक भी कोमल ही होते हैं
जिससे फ्लोरोसिस जल्द ही आक्रमण करके शरीर
में घुसपैठ कर लेता है। यही नही गर्भस्थ शिशु की माँ अगर फ्लोराइड युक्त जल का
सेवन करती है तो गर्भ में बढ़ रहे शिशु के
लिये बहुत ही हानिकारक होता है। आमतौर पर बच्चे 2-3 वर्ष की उम्र पार करते-करते अपंग और रोगग्रस्त हो जाते हैं। शुरू में पैर की हड्डी चौकोर एवं चपटी
हो जाती है और बाद में बच्चा लाचार होकर ही रह जाता
है। जवान पुरूष और महिलाए भी 35 से 40 वर्ष की उम्र तक पहुचते-पहुचते बुढ़ापे का अनुभव करने लगते हैं। उनकी कमर झुकने लगती
है और शारीरिक शक्ति में ह्रास होने लगता
है। हाथ-पैर
विकृत हो जाते हैं, दाँत पीले पड़ने लगते हैं और मसूड़े गलने लगते हैं।
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